एक करोड़ फीस, 23 लाख उम्मीदवार और बस 1.17 लाख सीटें, ये है मेडिकल एडमिशन NEET की हकीकत

NEET अब केवल एक परीक्षा भर नहीं रह गई है। यह एक पूरे शिक्षा बाजार का केंद्र बन चुकी है, जिसमें कोचिंग सेंटर, ऑनलाइन एजुकेशन प्लेटफॉर्म, सरकारी योजनाएं और निजी संस्थान सभी की बड़ी भूमिका है. मेडिकल कॉलेजों की सीटों में हर साल हो रही बढ़ोतरी, कोचिंग की बढ़ती फीस और परीक्षा पैटर्न में बदलाव ये सभी मिलकर NEET को देश की सबसे चर्चित प्रवेश परीक्षा बना चुके हैं.

NEET 2025 Image Credit: Money9 Live

NEET 2025: हर साल लाखों छात्र डॉक्टर बनने के सपने को लेकर दिन रात कड़ी मेहनत करते हैं. यही सपना उन्हें NEET (National Eligibility cum Entrance Test) की ओर ले जाता है जो भारत में मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में प्रवेश का एकमात्र गेटवे बन चुका है. 4 मई को NEET UG 2025 की परीक्षा होनी है. इस परीक्षा के नतीजे कई लोगों के भविष्य का फैसला करेगा. ऐसे में इस आर्टिकल के जरिए हम आपको NEET Exam से जुड़े पूरे इकोसिस्टम की एक तस्वीर दे रहे हैं जिसमें आपको सीटों की संख्या, कोचिंग का माहौल, एडमिशन प्रोसेस, फीस और कट-थ्रोट प्रतियोगिता के बारे में जानकारी मिलेगी.

मेडिकल सीटों की तस्वीर

NEET 2025 में भारत के 776 मेडिकल कॉलेजों में कुल 1,17,906 MBBS सीटें उपलब्ध हैं. इनमें से 55,616 सीटें सरकारी कॉलेजों में हैं जो 398 संस्थानों में फैली हैं. कुल 33 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में सरकारी MBBS सीटें मौजूद हैं. 43 मेडिकल कॉलेज ऐसे हैं जिनमें 250-250 सीटें उपलब्ध हैं. नीट यूजी 2025 के लिए लगभग 23 लाख छात्रों ने रजिस्ट्रेशन किया है. यह संख्या पिछले साल की तुलना में थोड़ी कम है, जब 24.06 लाख छात्रों ने पंजीकरण कराया था.

हेलो मेंटर वेबसाइट पर दी जानकारी के मुताबिक, पिछले पांच वर्षों में सीटों की संख्या में तकरीबन 41 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है और मेडिकल कॉलेजों की संख्या में भी 29 फीसदी इजाफा हुआ है. लेकिन यह बढ़ोतरी भी उस प्रतियोगिता के सामने नाकाफी लगती है जहां 2025 में करीब 23 लाख छात्र परीक्षा के लिए रजिस्टर्ड हैं.

एक अंक के फर्क से हजारों रैंक का फासला

NEET के एग्जाम में हर साल कट-थ्रोट कंपटिशन देखने को मिलती है. एक अनुमान के अनुसार 630 अंक हासिल वाले छात्र की रैंक 44,764 से 45,848 के बीच हो सकती है, वहीं 500 अंक लाने वाले की रैंक 2,05,946 से 2,07,370 तक जा सकती है. यानी एक सवाल का सही उत्तर या चूक छात्रों को हजारों रैंक ऊपर या नीचे फेंक सकती है.

NEET कोचिंग इकोसिस्टम, हजारों करोड़ की इंडस्ट्री

NEET की तैयारी अब एक बहु-स्तरीय उद्योग बन चुकी है. ऑफलाइन कोचिंग से लेकर ऑनलाइन प्लेटफॉर्म तक हर जगह इसका विस्तार हो चुका है. प्राइवेट प्वेयर्स ने इस सिस्टम को इतना महंगा कर दिया है कि छात्र लाखों रुपये कोचिंग फीस के नाम पर मिनटों में खत्म कर देते हैं.

ऑफलाइन कोचिंग संस्थान:

  • Aakash Institute – एक साल का कोर्स ₹1,36,526 में
  • Allen Career Institute – ₹1,30,000 से ₹1,80,000 तक
  • Resonance – एक साल का कोर्स ₹70,000 से ₹1,00,000; दो साल का ₹2 लाख तक
  • Margshree Classes – महीने के ₹3,000 से शुरू, सालाना ₹35,000 से ₹1,65,000 तक

ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स:

  • Physics Wallah (PW) – दो साल का कोर्स ₹4,800 से शुरू
  • Vedantu – ₹95,400 में दो साल का लाइव प्रोग्राम
  • Unacademy – सब्सक्रिप्शन आधारित, ₹933 प्रति माह से
  • Allen Digital – ₹59,990 में दो साल का डिजिटल कोर्स

सरकारी प्रयास: SATHEE जैसी सरकारी पहलें भी अब मैदान में हैं जो आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को फ्री वीडियो लेक्चर्स और टेस्ट सीरीज मुहैया करा रही हैं.

प्रवेश प्रक्रिया

NEET में सफल होने के बाद एडमिशन की प्रक्रिया की शुरुआत होती है. पहले NTA परीक्षा आयोजित करता है फिर दो स्तरों पर काउंसलिंग होती है:

  • 15% ऑल इंडिया कोटा के लिए MCC द्वारा केंद्रीय काउंसलिंग होती है (https://mcc.nic.in)
  • 85% राज्य कोटा के लिए हर राज्य अपनी अलग प्रक्रिया से काउंसलिंग करता है

काउंसलिंग के बाद उम्मीदवार को कॉलेज रिपोर्टिंग, डॉक्युमेंट वेरिफिकेशन और फीस जमा कराके प्रवेश प्रक्रिया पूरी करनी होती है. उसके बाद संबंधित कॉलेज NMC के दिशा-निर्देशों के अनुसार शैक्षणिक सत्र शुरू करता है.

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मेडिकल शिक्षा पर इकनॉमिक सर्वे की चेतावनी

Economic Survey 2024–25 के मुताबिक, भारत में मेडिकल शिक्षा कई समस्याओं से जूझ रही है. निजी कॉलेजों में फीस 1 करोड़ रुपये तक पहुंच रही है जिससे कई छात्र विदेश पलायन कर रहे हैं. हालांकि अगर आपको सरकारी कॉलेज मिल जाता है तो आप इस भारी भरकम फीस से बच जाते हैं. देश की 48 फीसदी MBBS सीटें निजी संस्थानों में हैं, जहां फैकल्टी की भारी कमी, ghost faculty और कम मरीजों की उपलब्धता जैसे मुद्दे शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहे हैं. सर्वे ने यह भी कहा कि डॉक्टरों को शुरुआती वेतन अन्य ग्रेजुएट्स के बराबर या कम मिल रहा है जिससे वे ग्रामीण क्षेत्रों की बजाय शहरों में जाने को मजबूर हैं. इसके अलावा मेडिकल सीटों का बंटवारा भी असंतुलित है. 51 फीसदी UG और 49 फीसदी PG सीटें दक्षिण भारत में हैं और स्पेशलाइजेशन में भी असमानता है. सर्वे ने सुझाव दिया है कि सरकार को फीस नियंत्रित करने, फैकल्टी की स्थिति सुधारने और ग्रामीण सेवाओं के लिए प्रोत्साहन बढ़ाने जैसे ठोस कदम उठाने होंगे.