RBI रिपोर्ट में SME IPO को लेकर बड़ा खुलासा, ज्यादा रिटर्न के चक्कर में निवेशक खा रहे धोखा; लॉन्ग टर्म में हो रहा नुकसान
RBI की नई रिपोर्ट में SME IPO को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है. शुरुआती दिनों में शानदार रिटर्न देने वाले ये IPO लॉन्ग टर्म में निवेशकों को नुकसान पहुंचा रहे हैं. रिपोर्ट के अनुसार, ज्यादातर SME शेयर लिस्टिंग के बाद वोलेटाइल हो जाते हैं और फंडामेंटल्स की अनदेखी के कारण निवेशकों को घाटा होता है.

SME IPO: भारतीय शेयर बाजार में SME IPO निवेशकों के लिए तेज रिटर्न देने वाला एक आकर्षक मौका लग सकता है. लिस्टिंग के दिन होने वाले भव्य गेन के किस्सों ने कई निवेशकों को अपनी ओर खींचा है. हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक के शोध में कई अहम खुलासे हुए हैं. RBI द्वारा किए गए एक ताजा अध्ययन के मुताबिक, पिछले दो वर्षों (FY24 और FY25) में लिस्ट हुए SME IPO के शेयरों के प्रदर्शन में एक महत्वपूर्ण तथ्य सामने आया है. इस अध्ययन में पाया गया कि इनमें से ज्यादातर SME शेयर लिस्टिंग के पहले दिन तो शानदार मुनाफा देते दिखे, लेकिन यह चमक लंबे समय तक नहीं टिक पाई.
लिस्टिंग के बाद इन शेयरों का प्रदर्शन बेहद अस्थिर रहा और कई मामलों में यह मुनाफा बनाए रखना संभव नहीं हो सका. सीधे शब्दों में कहें तो, शुरुआती उत्साह के बावजूद इन शेयरों में लॉन्ग टर्म निवेश के लिए ज्यादा जोखिम है.
समय के साथ बढ़ता अंतर
RBI के अध्ययन ने SME और Mainboard IPOs के रिटर्न की तुलना चार अलग-अलग अवधियों – एक सप्ताह, एक महीना, तीन महीने और छह महीने में की है. नतीजे दोनों खंडों के बीच जोखिम और रिटर्न में जबरदस्त अंतर दिखाते हैं. लिस्टिंग के पहले सप्ताह में SME और मेन बोर्ड दोनों तरह के IPO का रिटर्न औसतन शून्य के आसपास रहता है, लेकिन SME शेयरों में कीमतों में कहीं अधिक उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है. एक महीने बाद, ज्यादातर कंपनियों को नुकसान होता है, लेकिन कुछ चुनिंदा SME IPO इतने ऊंचे मुनाफे देते हैं कि औसत रिटर्न का अंतर कम दिखाई देने लगता है.
तीन से छह महीने में आती है सच्चाई सामने
तीन महीने के बाद अंतर साफ दिखने लगता है. मेन बोर्ड के IPO का रिटर्न एक सीमित और अनुमानित दायरे में रहता है, जबकि SME IPO का रिटर्न बेहद असमान होता है. कुछ में बहुत अधिक रिटर्न मिलता है, तो कई पूरी तरह शून्य या नुकसान में रहते हैं. छह महीने बाद यह अंतर और स्पष्ट हो जाता है. मेन बोर्ड के IPO स्थिर और मामूली मुनाफा देते हैं, जबकि SME IPO में कुछ तो अत्यधिक रिटर्न देते हैं, लेकिन बड़ी संख्या में ऐसे भी होते हैं जिनमें निवेशकों को कुछ नहीं मिलता या नुकसान होता है.
फंडामेंटल्स को नजरअंदाज कर रहे निवेशक
अध्ययन में कहा गया है कि कुछ SME शेयरों की अधिक मांग और शेयरों की सीमित संख्या के कारण निवेशक उन्हें खरीदने की होड़ में उनकी कीमतों को वास्तविक मूल्य से कहीं ऊपर तक धकेल देते हैं. छोटे निवेशक तेजी से मुनाफा कमाने के लालच में कंपनी की वित्तीय सेहत और फंडामेंटल्स को नजरअंदाज कर देते हैं, जिससे शेयरों का वैल्यू और भी बढ़ जाता है. पिछले दो वर्षों में लिस्ट हुए 100 SME IPO के अध्ययन से यह भी पता चला कि लगभग 20 प्रतिशत शेयर अपने इंडस्ट्री के औसत कीमत से काफी महंगे थे.
सट्टेबाजी बढ़ा रहे छोटे निवेशक
RBI के अध्ययन से यह भी पता चलता है कि SME IPO में जल्दी मुनाफे के पीछे भाग रहे छोटे निवेशकों की वजह से सट्टेबाजी बढ़ रही है. NSE के आंकड़े बताते हैं कि 30 वर्ष से कम उम्र के निवेशक अब बाजार का लगभग 39 फीसदी हिस्सा हैं, जो 2019 में सिर्फ 22.6 फीसदी था.
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