RBI ने घटाया रेपो रेट, लेकिन EMI जस की तस, जानें होम लोन कस्टमर्स के पास क्या हैं ऑप्शन
RBI जब भी रेपो रेट में कटौती करती है तो हमें अक्सर यह उम्मीद होती है इस कटौती से ईएमआई में कमी आएगी, लेकिन इसके बावजूद लोन कस्टमर की EMI या लोन अवधि में कोई राहत नहीं मिलती है. ऐसे में आइए जानते हैं कि अगर रेपो रेट में कटौती होने के बाद भी EMI का बोझ कम नहीं हो रहा है, तो हमें क्या करना चाहिए.
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने साल 2025 में अब तक चार बार रेपो रेट में कटौती की है. आमतौर पर जब भी RBI रेपो रेट घटाता है, तो यह उम्मीद की जाती है कि होम लोन सस्ता होगा या EMI का बोझ हल्का पड़ेगा. लेकिन हकीकत में कई ग्राहकों के साथ ऐसा नहीं होता. ऐसे में आइए जानते हैं कि अगर रेपो रेट में कटौती होने के बाद भी EMI का बोझ कम नहीं हो रहा है, तो हमें क्या करना चाहिए.
रेपो रेट कटने के बाद भी बैंक तुरंत ब्याज दर क्यों नहीं घटाते?
रेपो रेट वह दर होती है, जिस पर RBI बैंकों को कर्ज देता है. ऐसे में सैद्धांतिक रूप से रेपो रेट घटने का सीधा फायदा ग्राहकों को मिलना चाहिए. लेकिन व्यवहार में ऐसा जरूरी नहीं होता. कई बैंक और NBFCs RBI के फैसलों को लागू करने में देरी करते हैं. अक्सर देखा गया है कि जब ब्याज दरें बढ़ती हैं, तो ग्राहकों को तुरंत ईमेल या मैसेज आ जाता है. लेकिन जब दरें घटती हैं, तो न तो कोई सूचना मिलती है और न ही EMI में राहत दिखती है. इसका एक बड़ा कारण यह है कि बैंक अपनी आंतरिक नीतियों, फंडिंग कॉस्ट और मुनाफे को ध्यान में रखकर फैसले लेते हैं.
कैसे आपका फायदा कम कर दिया जाता है?
जब RBI रेपो रेट घटाता है, तो कई बैंक अपने मार्जिन या स्प्रेड को बढ़ा देते हैं. मार्जिन वह एक्स्ट्रा ब्याज होता है, जो बैंक बेंचमार्क रेट के ऊपर जोड़ते हैं.
उदाहरण के तौर पर, अगर रेपो रेट 0.25 फीसदी घटती है और बैंक मार्जिन 0.20 फीसदी बढ़ा देता है, तो ग्राहक को असल फायदा केवल 0.05 से 0.15 फीसदी का ही मिलता है. ऐसे में ब्याज दर जहां 7.25 फीसदी होनी चाहिए थी, वहीं कई ग्राहकों को 7.35 से 7.45 फीसदी पर ही होम लोन मिलता रहा.
मार्जिन बढ़ाकर राहत क्यों रोकी जा रही है?
साल 2025 में कई मामलों में बैंकों और NBFCs ने ब्याज दर घटाने के बजाय अपने मार्जिन में इजाफा कर दिया. इसलिए ब्याज दर कम नहीं की जा सकती. रेपो रेट में 0.25 फीसदी की कटौती के बावजूद बैंक आमतौर पर केवल 0.05 से 0.15 फीसदी का ही फायदा देते हैं. बाकी हिस्से को क्रेडिट रिस्क और ग्राहक प्रोफाइल का हवाला देकर रोक लिया जाता है.
अगर बैंक ब्याज दर कम न करें तो ग्राहक क्या करें?
ऐसी स्थिति में सबसे पहला कदम है कि ग्राहक अपने बैंक या NBFC को लिखित शिकायत दर्ज कराए और अपने लोन अकाउंट की पूरी जानकारी शेयर करे. अगर 30 दिनों के भीतर संतोषजनक जवाब न मिले, तो ग्रिवेंस रेड्रेसल ऑफिसर या बैंकिंग ओम्बुड्समैन के पास शिकायत की जा सकती है. दूसरा और ज्यादा असरदार तरीका नेगोशिएशन का है. ग्राहक किसी दूसरे बैंक से सस्ता होम लोन ऑफर लेकर अपने मौजूदा बैंक को दिखा सकता है. हालांकि ज्यादातर मामलों में बैंक ग्राहक को बनाए रखने के लिए ब्याज दर घटा देते हैं.
कितने समय के भीतर कम होनी चाहिए होम लोन की ब्याज दर?
RBI के फैसले के तुरंत बाद ब्याज दरों में बदलाव की उम्मीद करना सही नहीं होता. आमतौर पर तीन से छह महीने का समय लगता है. लेकिन अगर इस अवधि के बाद भी न तो EMI घटे और न ही लोन की अवधि कम हो, तो ग्राहक को सवाल उठाने का पूरा हक है. मिंट की रिपोर्ट के मुताबिक, सरकारी बैंक आमतौर पर एक हफ्ते के भीतर ब्याज दरों में बदलाव कर देते हैं. वहीं प्राइवेट और विदेशी बैंक अगले क्वार्टर की 15 तारीख तक दरों में संशोधन करते हैं. इस लिहाज से जनवरी से अक्टूबर 2025 के बीच हुई कटौतियों का फायदा अब तक ग्राहकों को मिल जाना चाहिए था.
NBFC से लोन लेने वालों को ज्यादा परेशानी क्यों होती है?
RBI की फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट के अनुसार, बड़े NBFC बैंकों से लिए गए कर्ज और पब्लिक डिपॉजिट पर ज्यादा निर्भर रहते हैं. जब बैंक खुद दरें घटाने में देरी करते हैं, तो इसका सीधा असर NBFC ग्राहकों पर पड़ता है. होम लोन अलग-अलग बेंचमार्क से जुड़े हो सकते हैं, जैसे BPLR, MCLR, EBLR, RLLR या बेस रेट. RBI ने पारदर्शिता बढ़ाने के लिए निर्देश दिए हैं कि फ्लोटिंग रेट लोन को रेपो रेट से जोड़ा जाए. चाहे लोन किसी भी बेंचमार्क से जुड़ा हो, फ्लोटिंग रेट होम लोन में ब्याज दर या लोन अवधि में कटौती होनी ही चाहिए. यह नियम केवल फिक्स्ड रेट होम लोन पर लागू नहीं होता.
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EMI कम कराना बेहतर है या लोन की अवधि घटाना?
कई बैंक ब्याज दर घटने के बाद EMI कम कर देते हैं, लेकिन लोन की अवधि वही रखते हैं. इससे कुल ब्याज का बोझ ज्यादा बना रहता है. MortgageWorld के आंकड़ों के मुताबिक, अगर EMI को समान रखा जाए और लोन की अवधि कम की जाए, तो लाखों रुपये का ब्याज बचाया जा सकता है. रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी 2025 में 25 साल की अवधि के लिए लोन लेने वाले ग्राहकों की अवधि अब तक करीब 70 महीने कम हो जानी चाहिए थी.
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