डिजिटल अरेस्ट के नाम पर ₹3000 करोड़ की ठगी, बुजुर्ग सबसे ज्यादा शिकार; सुप्रीम कोर्ट ने दिए सख्त कदम उठाने के निर्देश
भारत में डिजिटल गिरफ्तारी के नाम पर 3000 करोड़ रुपये की साइबर ठगी सामने आई है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसके सबसे ज्यादा शिकार बुजुर्ग लोग हैं. अदालत ने केंद्र सरकार को चेताया कि यह सिर्फ आर्थिक नहीं बल्कि सामाजिक संकट भी है. कोर्ट जल्द ही सख्त आदेश जारी करेगा ताकि सीमा पार से चल रहे इन साइबर गैंग्स और डीपफेक तकनीक के दुरुपयोग पर रोक लगाई जा सके.
देश में डिजिटल अरेस्ट के नाम पर बड़े पैमाने पर साइबर ठगी हो रही है. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बताया कि अब तक लगभग 3000 करोड़ रुपये की ठगी सिर्फ भारत में की जा चुकी है और इसके ज्यादातर शिकार बुजुर्ग लोग हैं. न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र सरकार की रिपोर्ट के हवाले से कहा कि यह समस्या उम्मीद से कहीं ज्यादा बड़ी है और इस पर सख्त कार्रवाई जरूरी है.
बुजुर्गों को बनाया जा रहा है निशाना
सुप्रीम कोर्ट में पेश रिपोर्ट के मुताबिक, डिजिटल गिरफ्तारी के मामलों में सबसे ज्यादा बुजुर्ग लोग प्रभावित हुए हैं. ठग खुद को पुलिस या जांच एजेंसी का अधिकारी बताकर डराते हैं और लोगों से लाखों रुपये ऐंठ लेते हैं. न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि यह समस्या सिर्फ आर्थिक नहीं बल्कि मानवीय दृष्टि से भी बेहद गंभीर है.
सख्त आदेश होंगे जारी
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि अदालत जल्द ही एजेंसियों को मजबूत करने के लिए कठोर और ठोस आदेश पारित करेगी. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी माना कि यह अपराध अनुमान से कहीं ज्यादा बड़ा है. उन्होंने कहा कि अगर समय रहते सख्त कदम नहीं उठाए गए तो यह समस्या और बढ़ सकती है.
सीबीआई जांच की संभावना पर विचार
सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी इस तरह के मामलों की जांच सीबीआई से कराने का सुझाव दिया था. अदालत के मुताबिक, कई ठग जज और पुलिस अधिकारी बनकर लोगों को वीडियो कॉल पर धमकाते हैं और फर्जी कोर्ट ऑर्डर दिखाकर पैसे वसूलते हैं. सरकार ने बताया कि ये अपराध सीमा पार से भी संचालित होते हैं और मनी लॉन्ड्रिंग गैंग्स से जुड़े होते हैं.
सीमा पार से हो रही ठगी
केंद्र सरकार ने बताया कि ये साइबर अपराध विदेशी नेटवर्क से चलते हैं, जहां अपराधी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और डीपफेक तकनीक का इस्तेमाल कर कोर्टरूम और पुलिस स्टेशन जैसे वीडियो बनाते हैं. इन वीडियो कॉल्स के जरिए वे पीड़ितों को डरा-धमकाकर पैसे वसूलते हैं. कई मामलों में लोगों को फर्जी नौकरी का लालच देकर भी शिकार बनाया गया है.
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वित्तीय और सामाजिक दोनों असर
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डिजिटल गिरफ्तारी का असर सिर्फ आर्थिक नहीं बल्कि सामाजिक भी है. इससे न केवल लोगों की जमा पूंजी लुट रही है बल्कि मानसिक तनाव और भय भी बढ़ रहा है. अदालत ने कहा कि यह समस्या अब “राष्ट्रीय चुनौती” बन चुकी है और इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर ठोस रणनीति बनानी होगी.
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