बंग्लादेश में 1971 जैसे हालात, फैक्ट्रियां बंद, बड़े पैमाने पर छंटनी; उद्योगपति बोले- आर्थिक तौर पर टूटने का डर
बांग्लादेश इस समय गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है. गैस और बिजली की भारी किल्लत के चलते उद्योग बंद होने की कगार पर हैं. फैक्ट्री बंद, छंटनी और डिफॉल्ट जैसे हालात बन रहे हैं. उद्योगपतियों ने इसे 1971 जैसे हालात बताया और सरकार पर कोई एक्शन ना लेने का आरोप लगाया.

Bangladesh facing economic crisis like 1971: बांग्लादेश में जारी राजनीतिक उठापटक दिन प्रतिदिन बद से बदतर होती जा रही है. हालात ऐसे हो गए हैं कि कुछ इसकी तुलना 1971 की स्थिति से कर रहे हैं. जहां एक तरफ वहां के कार्यवाहक मुखिया मोहम्मद यूनुस को सेना प्रमुख ने दिसंबर तक चुनाव कराने की मांग की है, तो वहीं रविवार को देश के कई प्रमुख व्यापार संगठनों ने एक प्रेस कांफ्रेंस कर देश के आर्थिक हालात पर चिंता जताई और चेतावनी दी कि अगर सरकार ने तुरंत कोई कदम नहीं उठाया तो नतीजे खतरनाक हो सकते हैं.
खतरनाक हो सकते हैं हालात
ढाका ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेश के प्रमुख व्यापार संगठन BTMA, FBCCI, BGMEA, BKMEA, BTTLMEA, BCI और ICC ने ढाका के गुलशन क्लब में एक प्रेस कांफ्रेंस कर बताया कि देश आर्थिक तौर पर टूटने की कगार पर है. कई प्रमुख उद्योगपतियों ने बताया कि बिजली और गैस की वजह से स्थानीय फैक्ट्रियां बंद होने के कगार पर हैं, जिसके कारण बड़े पैमाने पर कर्मचारियों की छंटनी और वित्तीय डिफाल्ट जैसे हालात पैदा हो सकते हैं. इसके बावजूद सरकार इस मामले के गंभीरता से नहीं ले रही है.
सरकार कोई कदम नहीं उठा रही
संगठन कार्यवाहक सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस पर कोई कदम नहीं उठाने का आरोप लगा रहे हैं. उनका कहना है कि देश में प्रोडक्शन कास्ट आसमान छू रही है और ईंधन की भारी कमी है तथा कारोबार के लिए देश में माहौल खराब हो गया है. सरकार को चेतावनी दी कि अगर तत्काल कदम नहीं उठाए गए तो देश में भुखमरी जैसे हालात पैदा हो सकते हैं.
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1971 जैसे हालात
व्यापार संगठनों ने वर्तमान में देश की तुलना बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई मुक्ति संग्राम 1971 से करते हुए कहा कि उस समय देश में बुद्धिजीवी वर्ग को निशाना बनाया गया था और इस समय उद्योगपतियों को निशाना बनाया जा रहा है. आरोप लगाया कि सरकार बिल तो सभी चीजों का ले रही है लेकिन सप्लाई किसी भी चीज की नहीं देती है. फैक्ट्रियां बंद हो चुकी हैं लेकिन कर्ज चुकाना पड़ रहा है और ब्याज दर भी बढ़ रही है और सरकार से हमें धमकियां मिल रही हैं.
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